नोटबंदी ने देश की कई संस्थाओं की साख दांव पर लगा दी। सिर्फ रिजर्व बैंक नहीं, प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री नाम की संस्थाओं की साख भी बिगड़ी। नोटबंदी के दौरान लगभग हर दिन कोई न कोई नई अधिसूचना जारी की गई। नियम बदले गए, जिनसे लोगों की मुश्किलें और बढ़ीं। हैरानी की बात है कि सारे काम रिजर्व बैंक की ओर से किए गए, लेकिन नोटबंदी के दौरान रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। सारे फैसलों की घोषणा वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने की। आर्थिक मामलों के सचिव, राजस्व सचिव आदि ने प्रेस कांफ्रेंस करके लोगों को नियम बदलने की जानकारी दी।
सबसे पहले प्रधानमंत्री की कही बातों की विश्वसनीयता देखते हैं। प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर को कहा कि 31 दिसंबर तक लोग अपने पुराने नोट बैंकों में जमा कर सकते हैं। उन्होंने और बाद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी कहा कि ढाई लाख रुपए तक जमा करने वालों से कोई कारण या पैसे का स्रोत नहीं पूछा जाएगा। लेकिन बाद में दो लाख रुपए तक जमा करने वालों को नोटिस भेजे जाने लगे और पैसे का स्रोत पूछा जाने लगा।
पहले कहा गया कि हर दिन चार हजार रुपए के नोट बदले जाएंगे। कुछ ही दिन के बाद इसे घटा कर दो हजार कर दिया गया और 15 दिन बाद 24 नवंबर को अचानक इसे बंद कर दिया गया। कहा गया कि अब नोट बदलने का काम सिर्फ रिजर्व बैंक के काउंटर पर होगा। इससे पहले नोटबंदी के एक हफ्ते बाद ही नोट बदलवाने वाले लोगों की उंगलियों पर न छूटने वाली स्याही लगाने का फैसला किया गया। 31 दिसंबर की सीमा खत्म होने से पहले 19 दिसंबर को ही एक नई अधिसूचना जारी करके कहा गया कि अगर कोई आदमी पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट में पांच हजार से ज्यादा रकम जमा कराता है तो उससे पूछताछ की जाए कि वह इतनी देरी से पैसे क्यों जमा करा रहा है। हालांकि इसकी चौतरफा आलोचना हुई तो रिजर्व बैंक ने नई अधिसूचना के जरिए यह नियम खत्म किया।
इसी तरह रिजर्व बैंक ने जन धन खातों से दस हजार से ज्यादा रुपए निकालने पर पाबंदी लगा दी। जिन खातों में आठ नवंबर के बाद रुपए जमा कराए गए थे, उनमें से भी पैसे निकालने की एक सीमा तय की गई। एक अधिसूचना जारी करके यह भी कहा गया कि बैंक अपनी शाखाओं की वीडियो फुटेज सुरक्षित रखें ताकि बाद में यह पता लग सके कि कितने लोग बार बार पैसे जमा कराने आए।
भारत की शीर्ष संस्थाओं की साख को इस बात से भी नुकसान पहुंचा कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा के समय यह कहा कि 31 दिसंबर के बाद भी अगर किसी व्यक्ति के पास पुराना नोट बच जाता है तो वह उसे 31 मार्च तक रिजर्व बैंक के काउंटर पर वाजिब कारण बता कर और हलफनामा देकर जमा करवा सकता है, लेकिन इसे 31 मार्च से पहले ही बंद कर दिया गया। 31 दिसंबर से पहले भी कई बार अधिसूचना जारी करके लोगों को पुराने नोट जमा करने या बदलने से रोका गया और 31 मार्च से पहले भी लोगों को पुराने नोट जमा कराने से रोका गया।
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